ABOUT SIDH KUNJIKA

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नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥ ६ ॥

देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति त्रयोदशोऽध्यायः

देवी माहात्म्यं अपराध क्षमापणा स्तोत्रम्

अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।

क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥ १० ॥

दकारादि दुर्गा अष्टोत्तर शत नामावलि

सरसों के तेल का दीपक है तो बाईं ओर रखें. पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुश के आसन पर बैठें.

धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥



येन मन्त्र प्रभावेण, चण्डी जापः शुभो भवेत।।

On chanting generally, Swamiji claims, “The greater we recite, the greater we listen, and the more we attune ourselves to your vibration more info of what's becoming explained, then the greater we will inculcate that Perspective. Our intention amplifies the Mindset.”

हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।

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